‘‘नयी दिल्ली में सब था-सिर्फ नाक नहीं थी।’’ इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

नई दिल्ली में सब था, सिफ नाक नहीं थी- यह कहकर लेखक भारत के आजाद हो जाने पर भी उसके मान-सम्मान का अबतक वापस न आ पाने क बारे में दुख व्यक्त करता है। वह कहना चाहता है कि गुलामी के जंजीरों में जकङे रहने से भारतीय अपने मान-सम्मान के बारे में भूल से गये हैं। उन्हें अंग्रेजों के सामने जी हुजुरी की लत लगी है। स्वतंत्रता मिलने के इतने वर्षों के बाद भी नयी दिल्ली में अहम पदों पर बैठे लोगों से वह लत छूट नहीं पा रही है। वे लोग अंग्रेजों के मान-सम्मान करने की होङ में अपने लोगों के स्वाभिमान की जरा भी चिंता नहीं कर रहे हैं बल्कि उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। लेखक की नजरों में यह एक बहुत ही दुखद स्थिति है।


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